आम चुनाव में क्षेत्रीय दलों के सामने तटस्थ बने रहने की चुनौती
विनय कुमार
दिल्ली आजकल ब्यूरो, दिल्ली
12 अगस्त 2023
आम चुनाव 2024 को लेकर तेज होती हलचल के बीच क्षेत्रीय और छोटे दलों के लिए तटस्थ बने रहना मुश्किल होता दिख रहा है. जिस तरह से एनडीए और इंडिया गठबंधन अपना कुनबा बढ़ाने में जुटे हुए हैं. उससे क्षेत्रीय दलों के सामने अकेले रहकर इन दोनों बड़े गठबंधन का सामना करना चुनौती बनता जा रहा है. यही वजह है कि कुछ समय पहले तक जो क्षेत्रीय दल स्वयं को गठबंधन की राजनीति से अलग रखने का दावा कर रहे थे. वे क्षेत्रीय दल भी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से इन गठबंधनों के साथ खड़े होते दिख रहे हैं.
आम आदमी पार्टी ने यह दावा किया था कि वह कांग्रेस के साथ नहीं जाएगी. लेकिन जब उसने देखा कि देश के तमाम क्षेत्रीय दल कांग्रेस के नेतृत्व में एक मजबूत गठबंधन बनाने की दिशा में बढ़ रहे हैं. ऐसे में उसने भी दिल्ली सेवा बिल पर समर्थन के बहाने कांग्रेस के साथ नजदीकी बढ़ाने का अवसर तलाश लिया. इस समय कांग्रेस और आम आदमी के बीच वैचारिक दूरी भी कम होती दिख रही है. दोनों ही दल एक दूसरे के लिए मजबूती से आवाज उठाते दिख रहे हैं. इसी तरह से एनडीए और कांग्रेस नीत गठबंधन से दूरी बनाने का दावा करने वाले बीआरएस के संस्थापक और तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव भी इंडिया गठबंधन की ओर झुकते हुए नजर आ रहे हैं. हालांकि उन्होंने औपचारिक रूप से इस गठबंधन से नाता नहीं जोड़ा है. लेकिन जिस तरह से वह सरकार के खिलाफ विभिन्न नीतियों पर इंडिया गठबंधन की तरह ही लाइन ले रहे हैं. उससे यह संकेत मिलता है की देर सवेर वह भी इंडिया गठबंधन में शामिल हो सकते हैं.
वहीं दूसरी ओर , वाईएसआर कांग्रेस पार्टी- तेलुगु देशम पार्टी और बीजू जनता दल भाजपा नीत एनडीए गठबंधन की ओर बढ़ते हुए नजर आते हैं. बीजू जनता दल ने तो केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की ओर से प्रस्तुत तीन नए कानूनों के समर्थन में जिस तरह से अपना पक्ष रखा. उसे अपना भरपूर समर्थन दिया. उससे यह संकेत मिलते हैं कि आम चुनाव के दौरान भले ही बीजू जनता दल और भाजपा अलग चुनाव लड़े. लेकिन चुनाव के बाद अगर जरूरत हुई तो भाजपा नीत एनडीए को बीजू जनता दल का समर्थन मिलना निश्चित है. इसी तरह से वाईएसआर कांग्रेस पार्टी ने भी खुले रूप में भाजपा को अपना समर्थन देना शुरू कर दिया है. जिससे यह संकेत मिलते हैं कि वह नहीं चाहती है कि राज्य में तेलुगू देशम के साथ भाजपा का कोई गठबंधन हो. उसे डर है कि अगर तेलुगू देशम पार्टी एनडीए में चली जाती है तो उसे राज्य में इसकी कीमत चुकानी पड़ सकती है. तेलुगू देशम को एनडीए जैसे बड़े गठबंधन की ताकत हासिल हो सकती है. जिससे हाशिए पर जाती तेलुगू देशम को नया जीवन मिल सकता है. इसके अलावा उसे यह डर भी है कि अगर तेलुगू देशम पार्टी एनडीए का हिस्सा हो जाती है. ऐसे में वाईएसआर कांग्रेस पार्टी को इस समय केंद्र सरकार से राज्य की विभिन्न योजनाओं के लिए जो आर्थिक सहायता मिल रही है. उसमें भी बाधा आ सकती है. जिसका वाईएसआर कांग्रेस पार्टी की राजनीतिक स्थितियों पर विपरीत असर पड़ सकता है. यही वजह है कि उसने खुलकर एनडीए का साथ देना शुरू कर दिया है. इससे भाजपा के पास आंध्र प्रदेश में तेलुगु देशम और वाईएसआर कांग्रेस के रूप में दो विकल्प उपलब्ध हो गए हैं. भाजपा अपनी सुविधा और लाभ के लिहाज से इनमें से किसी एक दल का चुनाव कर सकती है.
इधर, तेलुगू देशम पार्टी भी इस प्रयास में लगी है कि वह एनडीए का हिस्सा हो जाए. उसे यह उम्मीद है कि ऐसा होने पर उसे एनडीए की ताकत मिलेगी. जिससे वह राज्य में वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के खिलाफ फिर से एक बड़ी ताकत बनकर सामने आ पाएगी. यहां यह भी उल्लेखनीय है कि उसने खुले तौर पर भाजपा के साथ जाने को लेकर इनकार नहीं किया है. इसी तरह से संसद में वोटिंग के दौरान अनुपस्थित रहकर राष्ट्रीय लोकदल के नेता जयंत चौधरी ने भी अपने विकल्प खुले रखने का संकेत दिया है. यह माना जा रहा है कि राष्ट्रीय लोक दल इस समय वर्तमान परिस्थितियों का आकलन कर रही है. जिसके आधार पर वह आने वाले समय में इन दोनों बड़े गठबंधन में से बेहतर को चुनने का निर्णय कर पाए. यह कहा जा रहा है कि रालोद संभवत एनडीए को चुन सकता है. हालांकि जयंत चौधरी ने फिलहाल अपने पत्ते नहीं खोले हैं. इन दलों के अलावा शिरोमणि अकाली दल के सामने भी पंजाब में अपना अस्तित्व बचाए रखने की चुनौती बनी हुई है. उसके सामने यह समस्या है कि अगर वह इंडिया गठबंधन के साथ जाती है तो पंजाब में उसका जनाधार पूरी तरह से खत्म होने का संकट उत्पन्न हो सकता है. ऐसे में उसके सामने केवल एनडीए में शामिल होने या फिर अकेले चुनाव लड़ने का विकल्प बचता है. यह माना जा रहा है कि देर सवेर अकाली दल भी एनडीए का दामन थाम सकता है. अकाली दल लंबे समय तक एनडीए का साथी रहा है. किसान आंदोलन के समय वह एनडीए गठबंधन से अलग हो गया था.