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इंद्र वशिष्ठ, दिल्ली
15 जनवरी 2023

दिल्ली पुलिस ने साल 2022 में चोरी हुए सिर्फ 10.73 फीसदी चार पहिया वाहन ही बरामद किए हैं.
चोरी हुए वाहनों को बरामद करने के मामलोंं में पुलिस लगातार फेल हो रही है. दिल्ली पुलिस द्वारा पिछले नौ साल में (साल 2014 से नवंबर 2022 तक) चार पहिया वाहन/ कार बरामद करने की दर सिर्फ चार से 11 फीसदी के बीच ही रही है. इस अवधि में चोरी हुए लगभग तीन लाख वाहनों में से ढाई लाख से ज्यादा वाहनों को पुलिस बरामद ही नहीं कर पाई.

पुलिस मस्त, चोर चुस्त, लोग त्रस्त

वाहन बरामदगी के आंकड़ों से ही पता चलता है कि पुलिस वाहन चोरों को पकड़ने और चोरी के वाहन बरामद करने के लिए बिल्कुल भी गंभीर नहीं है. पुलिस की वाहन चोरी के अपराध को रोकने में रुचि नहीं है इसलिए वाहन चोर बेखौफ होकर वाहन चोरी में जुटे हुए हैं.

संसद में उठा गाड़ी चोरी का मामला

लोकसभा में 20 दिसंबर 2022 को तमिलनाडु से द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम पार्टी (डीएमके) के  सांसद ए.के. पी. चिनराज ने गृहमंत्री से सवाल पूछा था कि क्या यह सच है कि दिल्ली पुलिस ने वर्ष 2021 में चोरी हुए चौपहिया वाहनों में से केवल 7.56 प्रतिशत को ही बरामद किया है और बरामदगी प्रतिशत में ऐसी गिरावट के कारण क्या हैं? दिल्ली में वर्ष 2014 से 2021 तक जेब काटने, सेल फोन चोरी / झपटमारी, बाइक और कार चोरी की शिकायतों की कुल संख्या में कम बरामदगी किये जाने के क्या कारण हैं?

गृह मंत्रालय में राज्य मंत्री  नित्यानंद राय ने बताया कि दिल्ली पुलिस द्वारा बताया गया है कि चोरी हुए चार पहिया वाहनों की बरामदगी का प्रतिशत वर्ष 2018 से बढ़ रहा है. वर्ष 2018 से चोरी हुए चार पहिया वाहनों की बरामदगी का प्रतिशत इस प्रकार है: वर्ष 2018 में 6.46 फीसदी, वर्ष 2019 में 6.92 फीसदी, वर्ष 2020 में 7.56 फीसदी, वर्ष में 2021 में 8.09 फीसदी, वर्ष  2022 (30 नवंबर तक) में 10.73 फीसदी है.

सांसद ने पहले भी उठाया मामला

दिल्ली पुलिस ने साल 2021 में भी चोरी हुए सिर्फ आठ फीसदी कार /चार पहिया और तेरह फीसदी दो पहिया वाहन ही बरामद किए थे. लोकसभा में सांसद ए.के.पी.चिनराज ने ही वाहन चोरी के बारे में गृहमंत्री से 21 दिसंबर 2021 को भी सवाल पूछा था. जिसके जवाब में गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने बताया था कि दिल्ली पुलिस ने साल 2021 में जनवरी से तीस नवंबर तक कार(चार पहिया वाहन) चोरी के कुल 6161मामले दर्ज किए. इनमें से 495 (8.03 फीसदी) कार/चार पहिया वाहन पुलिस ने बरामद किए हैं.  इस अवधि मे दोपहिया वाहन (बाइक/स्कूटर) चोरी के कुल 25078 मामले दर्ज किए गए. पुलिस ने 3329 (13.27 फीसदी) दोपहिया वाहन ही बरामद किए हैं.

आठ साल में 29 हजार ही बरामद

साल 2014 से तीस नवंबर 2021 तक कार /चार पहिया वाहन चोरी के 60534 और दो पहिया वाहन चोरी के 207212 मामले दर्ज किए गए. इनमें से पुलिस सिर्फ़ 4207 कार/चार पहिया और 25237 दोपहिया वाहन ही बरामद कर पाई है. इस तरह सात साल और 11 महीने में दिल्ली में कुल 267746 वाहन चोरी हुए. जिसमें से पुलिस ने सिर्फ़ 29444 वाहन ही बरामद किए हैं.  इस अवधि में पुलिस द्वारा कार बरामद करने की दर चार से आठ फीसदी के बीच ही रही. दोपहिया वाहन बरामद करने की दर आठ से साढे़ तेरह फीसदी के बीच ही रही.

मोबाइल फोन लुटेरों का आतंक

दिल्ली वाले बेखौफ मोबाइल फोन लुटेरों/ झपटमारों से त्रस्त है.  साल 2021 में जनवरी से लेकर तीस नवंबर 2021 तक मोबाइल फोन झपटमारी के 6111 मामले पुलिस ने दर्ज किए. पुलिस ने 1613 मामलों में मोबाइल फोन बरामद किए. साल 2014 से साल 2021 (नवंबर तक) मोबाइल फोन की झपटमारी के कुल 36369 मामले दर्ज किए गए. पुलिस कुल 9874 मामलों में मोबाइल फोन बरामद कर पाई है. साल 2021 में जनवरी से तीस नवंबर तक जेब कटने के 2760 मामले दर्ज किए गए. इनमें से 880 मामलों को पुलिस ने सुलझाने का दावा किया है. साल 2014 से साल 2021 (नवंबर तक) जेब कटने के कुल 59958 मामले दर्ज किए गए हैं. इनमें से 13198 मामलों को ही पुलिस ने सुलझाया है.

पुलिस की भूमिका पर सवालिया निशान

पुलिस द्वारा बरामद मोबाइल फोन और वाहनों के आंकड़ों से पुलिस की कार्यप्रणाली और अफसरों की काबिलियत पर सवालिया निशान लग जाता है. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि लूटे गए मोबाइल फोन और चोरी गए वाहन को बरामद करने के लिए पुलिस बिल्कुल भी गंभीरता से कोशिश नहीं करती. आलम तो यह है कि जब से ऑनलाइन ई -एफआईआर दर्ज होने लगी है चोरी की सूचना मिलने पर पुलिस मौके पर जाने से भी परहेज करती है. कुछ आईपीएस अफसर भी यह कह कर पल्ला झाड़ लेते है कि वाहन मालिक को वाहन के बीमा की रकम तो मिल ही जाती है. आईपीएस अफसरों के ऐसे कुतर्क से उनकी काबिलियत पर सवालिया निशान लग जाता है. पुलिस का मूल काम अपराध रोकना और अपराधियों को पकड़ना होता है. लेकिन पुलिस अपना मूल काम ही नहीं करती है इसीलिए लुटेरे और वाहन चोर बेखौफ हो कर अपराध कर रहे है.

आंकड़ों की बाजीगरी बंद हो

अपराध को कम दिखाने के लिए मामलों को दर्ज न करना या हल्की धारा में दर्ज करने की परंपरा जारी है.
सच्चाई यह है कि अपराध के सभी मामलों को सही तरह से दर्ज किए जाने से ही अपराध और अपराधियों पर अंकुश लगाया जा सकता है. इसके अलावा दूसरा कोई रास्ता नहीं है. अभी तो आलम यह है कि लूट, स्नैचिंग, मोबाइल /पर्स चोरी आदि के ज्यादातर मामले दर्ज ही नहीं किए जाते हैं. लूट, झपटमारी, चोरी के ज्यादातर मामलों में शिकायतकर्ता से कह दिया जाता है कि वह खुद ऑन लाइन मोबाइल/पर्स  खो जाने या चोरी की रिपोर्ट दर्ज कर दे.

(लेखक इंद्र वशिष्ठ दिल्ली में 1990 से पत्रकारिता कर रहे हैं. दैनिक भास्कर में विशेष संवाददाता और सांध्य टाइम्स (टाइम्स ऑफ इंडिया ग्रुप) में वरिष्ठ संवाददाता रहे हैं.)

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