मध्य प्रदेश में भाजपा और कांग्रेस की मुश्किल बढ़ा सकती है बसपा और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी की दोस्ती
दिल्ली आजकल ब्यूरो, दिल्ली
7 अक्टूबर 2023
मध्यप्रदेश चुनाव में पहली बार एक नया तरह का समीकरण सामने आ रहा है. दलित वोटों की राजनीति करने वाली बसपा ने यहां पर आदिवासी वोटों की राजनीति करने वाली गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के साथ करार किया है. इसके अंतर्गत बसपा 178 सीटों पर चुनाव लड़ेंगी. जबकि गोंडवाना गणतंत्र पार्टी 52 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. यह माना जा रहा है कि इन दोनों दलों के साथ आने से भाजपा की मुश्किल और बढ़ सकती है. इसकी वजह यह है कि इस समय राज्य की राजनीतिक स्थिति के लिहाज से भाजपा कठिन स्थिति में नजर आ रही है. उसे एक—एक सीट पर कड़ी मेहनत की जरूरत दिख रही है. हाल के समय में भाजपा ने दलित—ओबीसी—आदिवासी वोटों पर ध्यान केंद्रीत करने की रणनीति बनाई है. ऐसे में इन दोनों दलों के साथ आने से उसे इस वोट आधार में सेंध की चुनौती का सामना करना पड़ सकता है. जिससे उसकी समस्या बढ़ सकती है. हालांकि भाजपा ने कहा है कि राज्य में इन दोनों दलों का कोई बड़ा आधार नहीं है. इससे उसके चुनाव पर कोई असर नहीं होगा.
राज्य में यह पहली बार होगा. जब एससी और एसटी के प्रतिनिधि दल एक साथ आ रहे हैं. गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का गठन 1991 में हुआ था. इसका असर छग में भी है. यह दल अलग गोंडवाना राज्य की मांग करता रहा है. पिछले चुनाव में इस दल ने एक सीट जीती थी. जबकि बसपा ने दो सीटों पर जीत दर्ज की थी. गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का असर आदिवासी प्रभाव वाले महाकौशल क्षेत्र में है. जबकि बसपा का प्रभाव उप्र से लगने वाले बुंदेलखंड, चंबल—ग्वालियर क्षेत्र में है. राज्य में दलित वर्ग की आबादी 16 प्रतिशत है. जबकि एसटी आबादी करीब 21 प्रतिशत है. दोनों दलों को यह आबादी ही अपनी ताकत नजर आ रही है. जो मिलकर 37 प्रतिशत हो जाती है. इन दलों का कहना है कि पहली बार एससी—एसटी एक साथ आए हैं. जो परंपरागत दलों को जमीनी हकीकत दिखाएंगे.
हालांकि पिछले चुनाव की बात करें तो राज्य की आरक्षिण 35 एससी सीटों में से 18 पर भाजपा ने जीत दर्ज की थी. वहीं, कांग्रेस को 17 सीटें मिली थी. जबकि राज्य की कुल आरक्षित 47 एसटी सीटों में से भाजपा को केवल 16 सीटें मिली थी. जबकि कांग्रेस 30 सीटों पर जीती थी. रोचक यह है कि गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने पिछले चुनाव में कांग्रेस को 20 सीटों पर नुकसान पहुंचाया था. इस बार गठबंधन को लेकर उसकी बात कांग्रेस से चल रही थी. वह केवल 5 सीटों की मांग कर रही थी. लेकिन कांग्रेस ने गठबंधन में देरी की तो उसने बसपा के साथ नया गठबंधन बना लिया. दोनों दल अब अपने गठबंधन को तीसरा मोर्चा बनाने की कवायद कर रहे हैं. जिसमें वे छोटे दलों को शामिल करने के लिए भी तैयार हैं.