संजय सिंह की गिरफ्तारी से अधर में फंस सकता है आम आदमी पार्टी का

 ‘ भारत जीतो अभियान ‘  

दिल्ली आजकल ब्यूरो , दिल्ली 

5 अक्टूबर 2023

आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह को प्रवर्तन निदेशालय , ईडी, ने करीब दस घंटे की पूछताछ के बाद गिरफतार कर लिया. भाजपा इसे भ्रष्टाचार करने वालों के खिलाफ कानून की कार्रवाई करार दे रही है. उसके नेताओं ने आम आदमी पार्टी के खिलाफ मोर्चा भी खोल दिया है.लेकिन यह माना जा रहा है कि इससे दिल्ली में भाजपा की तुलना में आम आदमी पार्टी को ज्यादा राजनीतिक लाभ हो सकता है. जनता की सहानुभूति उसके साथ बढ़ सकती है. वही दूसरी ओर, आम आदमी पार्टी को संजय सिंह की गिरफतारी से उसके मिशन 2024 के मोर्चे पर समस्या होगी. वह आम आदमी पार्टी के तेज—तर्रार नेता हैं और संसद में उसकी आवाज बुलंद करने के साथ ही विपक्षी गठबंधन इंडिया में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का प्रतिनिधित्व भी करते रहे हैं. ऐसे में संजय सिंह के न होने से इंडिया गठबंधन में आम आदमी पार्टी की स्थिति प्रभावित होने की आशंका उत्पन्न होगी.

संजय सिंह से पहले अलग मामलों में आरोपी के रूप में जांच एजेंसियां आम आदमी पार्टी के नेता सत्येंद्र जैन, दिल्ली के पूर्व उप—मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को गिरफतार कर चुकी है. संजय सिंह की तरह ही ये दोनों नेता भी दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के सबसे भरोसेमंद साथी थे. खासकर मनीष सिसोदिया को अरविंद केजरीवाल की आंख—कान माना जाता था. यह कहा जाता था कि उनकी आम आदमी पार्टी में वही स्थिति है. जो भाजपा में केद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की है. वह पार्टी की रणनीति को अमलीजामा पहनाने से लेकर नए प्रदेशों में पार्टी के विस्तार के लिए भी कार्य करते थे. लेकिन पिछले साढ़े सात महीने से मनीष सिसोदिया जेल में हैं. उनके जेल जाने के बाद अरविंद केजरीवाल अपनी पार्टी के राष्ट्रीय विस्तार के लिए संजय सिंह पर काफी भरोसा कर रहे थे. यही वजह है कि इंडिया गठबंधन की बैठकों में संजय सिंह ही आम आदमी पार्टी का प्रतिनिधित्व करते थे. संजय सिंह की गिरफतारी के बाद अरविंद केजरीवाल उनकी भूमिका किस नेता को देंगे.इस पर सभी की नजर है. लेकिन यह तय माना जा रहा है कि सत्येद्र जैन, मनीष सिसोदिया के बाद संजय सिंह की गिरफतारी से अरविंद केजरीवाल के मिशन 2024 पर बड़ा असर होगा. खासकर इंडिया गठबंधन में भी इसकी  वजह से उसकी स्थिति प्रभावित होगी. इसकी वजह यह है कि किसी भी नए प्रतिनिधि को वहां पर अपनी जगह बनाने, स्वयं को अरविंद केजरीवाल का विश्वस्त प्रतिनिधि नियुक्त करने की जददोजदह से गुजरना होगा. जबकि गठबंधन में शामिल अन्य दल इस स्थिति का उपयोग अपने हित के लिए कर सकते हैं. 

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