भारत में बेरोजगारी बड़ी समस्या, पढ़े-लिखे लोग भी डिग्री लेकर कर रहे नौकरी की तलाश – कांग्रेस
दिल्ली आजकल ब्यूरो , दिल्ली
28 सितंबर, 2023
कांग्रेस ने कहा है कि भारत में बेरोज़गारी एक गंभीर समस्या बनी हुई है. छिपी बेरोज़गारी की स्थिति भी चिंताजनक है. कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि दिल्ली के आनंद विहार टर्मिनल पर अपनी बातचीत के दौरान राहुल गांधी ने देखा कि बड़ी संख्या में शिक्षित युवा, जिनमें इंजीनियरिंग डिग्री वाले भी शामिल हैं, औपचारिक रोज़गार पाने में असमर्थ हैं. वे मजबूरी में कुली जैसा अनिश्चित और अनौपचारिक रोज़गार कर रहे हैं.
औपचारिक क्षेत्र में पर्याप्त रोज़गार उपलब्ध कराने में मोदी सरकार की घोर विफलता के कारण यह स्थिति उत्पन्न हुई है.
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) के 2021-22 के आंकड़ों से पता चलता है कि औपचारिक क्षेत्र में रोज़गार 2019-20 की तुलना में 5.3% कम हैं. इसके अलावा 2019-20 से 2021-22 तक औपचारिक क्षेत्र में रोज़गार देने वालों की संख्या में भी 10.5% की भारी गिरावट आई है.
कांग्रेस के मुताबिक अज़ीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2021-22 में 25 साल से कम उम्र के 42% ग्रेजुएट बेरोज़गार थे. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) के आंकड़ों के मुताबिक, 2016-17 और मार्च 2023 के बीच मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की नौकरियों में 31% की गिरावट आई है.
जनवरी-मार्च 2023 के नवीनतम आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) से पता चलता है कि शहरी क्षेत्रों में भी 50% से कम श्रमिक वेतनभोगी हैं. नवीनतम अखिल भारतीय PLFS डेटा — जिसमें कि ग्रामीण क्षेत्र भी शामिल है — बहुत चिंताजनक है. इसके मुताबिक 2021-22 में केवल 21% श्रमिकों के पास ही औपचारिक नौकरियां थी. जो अभी भी 23% की महामारी-पूर्व अवधि से कम है. इसके बजाय, स्व-रोज़गार और अनौपचारिक रोज़गार में वृद्धि हुई है.
कांग्रेस ने कहा है कि ये आंकड़े बताते हैं कि मोदी सरकार की विनाशकारी आर्थिक नीतियों और बिना किसी प्लानिंग के किए गए लॉकडाउन ने वास्तव में शिक्षित युवाओं के लिए औपचारिक रोज़गार के अवसरों को कम कर दिया है.
इसके बाद हमें निम्न स्थितियां भी देखने को मिलती हैं: जनवरी 2023 में, 8,000 उम्मीदवारों ने गुजरात विश्वविद्यालय में क्लर्क के 92 पदों के लिए आवेदन किया. इनमें एमएससी और एमटेक वाले भी शामिल थे. जून 2023 में महाराष्ट्र में क्लर्क के 4,600 पदों के लिए 10.5 लाख लोगों ने आवेदन किया. इनमें एमबीए, इंजीनियर और पीएचडी होल्डर्स भी शामिल थे. आर्थिक संकट के कारण निजी क्षेत्र में नौकरियां कम हो रही हैं. उच्च शिक्षा प्राप्त युवाओं को बहुत कम संख्या में मौजूद सरकारी पदों के लिए प्रतिस्पर्धा करने को मजबूर होना पड़ रहा है.
मोदी सरकार में सार्वजनिक क्षेत्र के सिकुड़ने के कारण यह स्थिति और भी बदतर होती जा रही है. अगस्त 2022 तक केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों में 9.8 लाख पद खाली थे. CMIE के डेटा से पता चलता है कि 2015-16 और 2022-23 के बीच सरकारी नौकरियों में 20% की कमी आई है. भारत में अब प्रति 1000 जनसंख्या पर सार्वजनिक कर्मचारियों की संख्या सबसे कम है. यह संख्या संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्राजील और यहां तक कि चीन से भी कम है.
मोदी सरकार रोज़गार संकट से निपटने के बजाय आंकड़ों को छिपाने, तोड़-मरोड़ कर पेश करने और तरह-तरह की नौटंकी करने में व्यस्त है. EPFO डेटा से सामने आ रहे स्थिर वार्षिक अनुमानों पर भरोसा करने के बजाय वे गैर भरोसेमंद मासिक डेटा का प्रचार-प्रसार करने में लगे हैं. वे जानबूझकर इस तथ्य को नज़रअंदाज़ कर रहे हैं कि मासिक डेटा को कई बार 50% से भी अधिक तक संशोधित किया जाता है. इसमें बड़ी खामियां होती हैं. सरकारी नौकरी देने में अपनी विफलताओं को छिपाने के लिए प्रधान मंत्री व्यक्तिगत रूप से रोज़गार मेलों का आयोजन कर रहे हैं. इन मेलों ने नियमित सरकारी कामकाज का पूरी तरह से मजाक बना दिया है. सार्वजनिक क्षेत्र में लगभग 10 लाख रिक्तियों के बावजूद, मोदी सरकार पहले से ही स्वीकृत पदों के लिए 50,000 जॉब लेटर को इस तरह पेश करती है. जैसे कोई बड़ा काम कर दिया हो. यह हास्यास्पद है कि वे इसी आधार पर दावा करते हैं कि रोज़गार पैदा कर रहे हैं.
इसके अलावा द टेलीग्राफ के RTI डेटा से पता चलता है कि रोज़गार मेलों में सभी जॉब लेटर्स को “नई भर्तियों” के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है. लेकिन इनमें एक बड़ी संख्या वास्तव में सिर्फ पदोन्नति है.
सबसे निराशाजनक राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (NSSO) की अप्रैल 2023 की रिपोर्ट का एक आंकड़ा है. भारत के कुल 33% युवाओं के पास न तो नौकरी है, न ही वे शैक्षिक या प्रशिक्षण पाठ्यक्रम ले रहे हैं. महिलाओं के मामले में यह संख्या 50% से अधिक है. मोदी सरकार ने भारत के युवाओं के सपनों और आकांक्षाओं को इस हद तक कुचल दिया है कि उनके पास नौकरी तो नहीं ही है. उन्होंने भविष्य में भी इसकी उम्मीद छोड़ दी है. वे इस हद तक हताश हैं कि शिक्षा या प्रशिक्षण में निवेश करना ही नहीं चाहते. इसका दुखद परिणाम यह है कि युवा आत्महत्या दर (30 वर्ष से कम आयु) 2016 के बाद से तेज़ी से बढ़ रही है. वर्ष 2021 में यह 4.9 प्रति लाख जनसंख्या तक पहुंच गई है. जो 25 वर्षों में सबसे अधिक है. जनसांख्यिकीय लाभांश के जनसांख्यिकीय आपदा में बदलने के संकट से निपटने के बजाय यदि मोदी सरकार युवाओं में आत्महत्या दर को छिपाने के लिए 2022 के राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों में हेरफेर करने का अगला कदम उठाए तो हमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए.