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8 October 2022

विनय कुमार, दिल्ली

आम चुनाव 2014 की तैयारी में जुटी भाजपा उत्तर प्रदेश में एक बड़ी रणनीति पर काम कर रही है. वह राज्य की विभिन्न सीटों पर मुस्लिमों के बीच वोटिंग ट्रेंड जानने के लिए स्थानीय निकाय चुनावों में अल्पसंख्यक उम्मीदवारों को भी मैदान में उतारने पर विचार कर रही है. भाजपा अपनी इस रणनीति के तहत यह जानने का प्रयास करेगी कि अगर उसने मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया तो उसके पक्ष में क्या मुस्लिम मत का प्रतिशत बढ़ा है. क्या यह फायदा उसे हिंदू वोटों के नुकसान के एवज में तो नहीं हो रहा है. मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट देने से कितने प्रतिशत हिंदू वोट का नुकसान उसे हो रहा है. 

सूत्रों के मुताबिक भाजपा यह संदेश देना चाहती है कि वह मुस्लिम विरोधी नहीं है. यह केवल संयोग है कि पिछले कुछ समय से कोई भी मुस्लिम चेहरा भाजपा के टिकट पर चुनाव नहीं लड़ा है. लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि भाजपा धर्म के आधार पर टिकट देती है. वह केवल यह देखती है कि कौन उम्मीदवार सीट जीत सकता है. इसके आधार पर ही टिकट वितरित किए जाते हैं. अगर ऐसा नहीं होता तो रामपुर से मुख्तार अब्बास नकवी को विभिन्न बार टिकट नहीं मिला होता. हालांकि  एक सच यह भी है कि मुख्तार अब्बास नकवी का कार्यकाल 7 जुलाई को खत्म होने के साथ ही भाजपा के पास इस समय संसद में एक भी मुस्लिम सांसद नहीं है. नकवी राज्यसभा के सदस्य थे. वर्ष 2014 से भाजपा ने किसी भी मुस्लिम उम्मीदवार को लोकसभा चुनाव का टिकट नहीं दिया है. देश के 31 राज्यों /केंद्र शासित प्रदेश में भाजपा का एक भी मुस्लिम विधायक नहीं है. इतना ही नहीं, उत्तर प्रदेश के वर्ष 2017 स्थानीय निकाय चुनाव में भी भाजपा ने किसी मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया था. 

ऐसे में अचानक से भाजपा उत्तर प्रदेश स्थानीय निकाय चुनाव में मुस्लिम उम्मीदवारों पर दांव क्यों लगाना चाहती है. इस सवाल के जवाब में भाजपा के एक नेता ने कहा कि कांग्रेस सहित कुछ दलों ने भाजपा को लेकर यह छवि बना दी है कि हम मुस्लिम विरोधी है. लेकिन अगर ऐसा होता तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीन तलाक के मुद्दे पर कानून क्यों बनाते. वह पसमांदा मुसलमानों की बेहतरी के लिए कदम क्यों उठाते. कश्मीर से पहली बार एक मुस्लिम को राज्यसभा का मनोनीत सदस्य क्यों बनाया जाता. इस नेता ने कहा कि उत्तर प्रदेश में 11995 वार्ड विभिन्न महानगर पालिका, नगर निगम, नगर पालिका, और स्थानीय निकाय में है. इनमें से करीब 1000 वार्ड ऐसे हैं. जो मुस्लिम बहुल हैं. इन सभी वार्ड में हमारे पास मुस्लिम नेता और कार्यकर्ता है.हम इनमें से ही  उम्मीदवार बनाने पर विचार कर रहे हैं.

हालांकि जानकारों का कहना है कि भाजपा आम चुनाव 2014 के लिए उत्तर प्रदेश में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती है. यही वजह है कि वह पहली बार मुस्लिम उम्मीदवारों को स्थानीय निकाय में चुनाव टिकट देने पर विचार कर रही है. इनमें से अधिकतर टिकट पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ही दिए जाएंगे. जहां मेरठ, रामपुर, सहारनपुर, आगरा, बरेली, बागपत, मुरादाबाद जैसे इलाकों में स्थानीय चुनाव में मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया जा सकता है. भाजपा ने पहली बार रामपुर और आजमगढ़ जैसी मुस्लिम बहुल सीटों पर लोकसभा उप चुनाव जीता है. जिससे भाजपा को यह विश्वास हुआ है कि अगर वह रणनीतिक बदलाव कर चुनाव लड़े तो मुस्लिम बहुल सीटों पर भी वह अपना परचम लहरा सकती है. हालांकि रामपुर और आजमगढ़ में भी भाजपा ने हिंदू उम्मीदवार ही उतारे थे. लेकिन सपा और बसपा के उम्मीदवारों ने उसके पक्ष में समीकरण को आसान किया था.

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